Sudhir Sharma ,prisoner no.797 ,in a Goa Jail had only one addiction - books. He opted for the job of cleaning the toilets because this was the only way to get time to pursue his interest .Scores of Hindi writers and social activists sent him books. This worked smoothly initially but soon over jealous Jail officials stopped delivering him the packets of books and started returning them. They had very funny excuses for it." You can get any thing in Jail- drugs,liquor,women , if you have money or right connections but not books" Sudhir wrote desperately to an outside friend in a letter which was smuggled out clandestinely. People like Vibhuti Narain Rai, a senior Police Officer and Hindi writer and Sumant Bhattacharya, a journalist took his case to National Human Rights Commission and with the intervention of Commission and Judiciary, Sudhir once again got the books. After serving ten years in the Jail, Sudhir has joined the world of books. He is the librarian of Sri Ramanand Saraswati Pustkalaya.
एक नयी भूमिका मेँ भूतपूर्व कॆदी
हेरोइन रखने के आरोप मेँ गोवा जेल मेँ बन्द कॅदी नम्बर 797, सुधीर शर्मा से जेल जाने के बाद हेरोइन की लत तो छूट गयी किंतु वह एक नये नशे का शिकार हो गया ! यह नशा था किताबोँ और पत्रिकाओँ का ! सँयोग से ज्ञानरंजन और उनकी पत्रिका पहल से हुआ परिचय जीवन मेँ एक निर्णायक मोड साबित हुआ! ! उसने ढूँढ ढूँढ कर लेखको से किताबेँ मँगवानी शुरु कीँ ! देश भर के तमाम लेखकोँ ने उसे किताबें भेजीं ! पढने के लिये अधिक समय मिले इसके लिये सुधीर ने जेल अधिकरियों से अपने लिये टायलेट साफ करने का काम माँग लिया क्योंकि यही एक अकेला काम था जिसमे काफी वक्त बचता था ! कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक ठाक चलता रहा पर जल्दी ही जेल अधिकारियोँ ने उसे किताबें देने से मना कर दिया और किताबोँ के पार्सल लौटने लगे ! इस हरकत के लिये जेल अधिकारियोँ के पास बडे मजेदार तर्क थे ! "अगर आपके पास पॆसा या सही पहुँच हॆ तो जेल के अन्दर आपको शराब, गाँजा यहाँ तक कि लडकी भी मिल सकती हॆ किंतु किताबेँ नहीँ मिलेँगी", सुधीर ने छिपा कर भेजे गये अपने एक खत मे लिखा ! सुधीर की लडाई पुलिस अधिकारी एवँ लेखक विभूति नारायण राय तथा पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग , न्यायपालिका तथा मीडिया के माध्यम से लडी ! अंतत: सुधीर को फिर से किताबेँ मिलने लगीं ! 2003 मे जेल से छूटने के बाद सुधीर सीधे किताबोँ की दुनियाँ में चला गया ! आज वह श्री रामानन्द सरस्वती पुस्तकालय का लाइब्रेरियन हॆ जहाँ खुद किताबें पढने के अलावा वह एक बडे पाठक समुदाय को किताबों से जोडने का काम कर रहा हॆ !
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